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Rashid Azar

सुलहनामा

Religion1 min read

जब मुहम्मद (SA) पहली बार हज करने के लिए मक्का जा रहे थे उस वक़्त उन्हें मक्का वालों ने आने नहीं दिया और जंग के लिए भी तैयार थे। मक्का वालों को ये भी मालूम था कि वो रसूलुल्लाह की सेना का मुक़ाबला कभी नहीं कर पाएंगे फिर भी ज़िद पैर थे कि उन्हें मक्का में दाखिल नहीं होने देंगे। उमर (RA) ने अबू बक्र (RA) ने पुछा :

  1. क्या हम हक़ पे नहीं हैं ?
  2. क्या हम उन लोगों से ज़्यादा ताक़त में नहीं हैं ?

अबू बक्र (RA) ने कहा, हाँ उमर ये दोनों बातें सही हैं लेकिन रसूलुल्लाह अमन चाहते हैं, हम हज के लिए जा रहे हैं हमें खून नहीं बहाना। काफ़ी दिनों की बात चीत के बाद सुलह हुआ। सुलहनामा कुछ ऐसा था :

  1. अगर कोई मक्का का निवासी मुसलमान बनना चाहता है और मदीना आता है तो उसे अपने parent से इजाज़त लेनी पड़ेगी अन्यथा उसे वापिस मक्का भेज दिया जाये।
  2. अगर कोई मुसलमान वापिस अपने दीन पे जाना चाहे तो उसे किसी से इजाज़त नहीं लेना।
  3. इस साल कोई हज नहीं होगा। अगले साल 3 दिन के लिए मक्का में आकर हज कर सकते हैं लेकिन शर्त ये है कि आप अपने साथ कोई हथियार नहीं ला सकते।

इस सुलहनामे पे मक्का की तरफ से सुहेल इब्न अम्र ने हस्ताक्षर किया था और मुसलमानों की तरफ से उन्ही के बेटे अब्दुल्लाह इब्न सुहैल ने।

इस वाकये से सबक़ मिलता है कि अपना हक़ लेना इन्साफ है लेकिन अमन क़ायम करने के लिए हक़ छोड़ देना ही बेहतर है।

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